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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड तेरावा (थोरले माधवराव)

                                                                 पत्रांक २९.

१७६६ ता. १७ आक्टोंबर                                                    श्री.                                                              श्रावण वद्य ५ शके १६८८

असल बा। नकल
वेदशास्त्र-संपन्न राजश्री मोर-जोशी बीन विठ्ठल जोशी राईरकर गोत्र अत्री, सूत्र आश्व-लायन, वास्तव्य मौजे उरवडें तार मुठें-खारें, गोसावी यांसि स्ने।। सखुबाई शिंदी दंडवत सु।। सबासितैन मया व अलफ. तुम्हीं को। श्रीगोंदे येथील मुकामीं येऊन विदित केले की ‘आपण कुटुंब वत्छल, स्नानसंध्यादिक शट्कर्मे आचरोन राज्यास अभीष्ट चिंतन करीत आहों. तरी कृपाळू होऊन योगक्षेम चालविला पाहिजे’ म्हणोन त्याजवरून मनास आणितां तुम्हीं थोर ब्राह्मण, सत्पात्र, स्नानसंध्यादिक शट्कर्मे आचरोन राज्यास अभीष्ट चिंतन करितां, हे जाणोन (व) तुमचे चालविल्यास श्रेयस्कर जाणोन तुम्हांवरी कृपाळू होऊन नूतन इनामी गांव पैकीं 

१ मौजे भुसावळ ता। साकेगांव प्रो एदलाबाद प्रां खानदेश येथील तनखा टक्के ४२०० पैकी खेरीज मोकासा करून, दरोबस्त अमल रुपये
१ मौजे चोपडगांव पो शेवगांव सरकार अमदानगर एथील तनखा १९८६ रुपये खेरीज मोकास, बाबती, सरदेशमुख करून, दरोबस्त बाकी जाहगिरीचा अमल मोगलाई.
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ए।। दोन गावचा अम्मल जलतरु-काष्ट-पाशाण-निधीनिक्षेप आम्ही (अमल?) करून हाली-पट्टी व पेस्तरपट्टी सुद्धां इनाम करार करून दिल्हा असे. तरी तुम्ही व तुमचे पुत्र-पौत्रादी वंशपरंपरेनें गावचा अम्मल अनुभवून सुखरूप राहाणें. जाणिजे छ १२ माहे जमादिलावल हे विनंति मोर्तब असे.

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