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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड दहावा (१७६१-१८१७)
पत्रांक ३४८
॥ १ ॥ १७१२ कार्तिक वद्य ७
पंश्री राजेश्री बाबूराउ केसोराउजू ऐते श्री राजघरबहादुर गजसिंघजू श्री गंधृपसिंधजुके वांचने ओंपर अपने समाचार सदा सर्वदा भले चाहिजै. तापी छै यहाके समाचार भले है. आपकी मिहरवानगीते ओपर आगैतै आपुसौं श्री हजूरी सौ जिहतरह व्यौहार रहो आयौ है सो हमेतो तौनउ तरह समजै है. अरु आपु जेठे सरदार हौ. हमारी वातके ख्खैया आपऊ हौ. आपुसिवाइ हमै दुसरौ कोऊ नाहीं दिखातु आइ. अरु आगै पंश्री पंडित खंडोराऊ यहां आए हते सो राज्यकी जागा सवतहसन हसकरी अनै पश्री पंडित लछमनराऊ झासी बारे आए, सो हमारौ ऊनकौ सूत हतौ हमसौ ऊनसौ तौ भैटऊन हौन पाई. तुहलौ श्रीनौनै अरजुनसिंघनें न्याऊ करमार कै भगाइ दए अरु लूट लए. ऊनकौ भगाकै अव हमारे राज्यपै आए सो हमै छैकैहै. जौतौ इनकौ पारपत होई अरु हमारी मदत होवे. मै आवै तौ हम आपके ऊकमी है. जौ तो हमारी दसपंद्रा हजार घौरेकी मदत होवे, मै आवे अरु हमारे भया श्री गंधृपसिंघकौ संग लिवा ऐ आवै, तौ हम पैसान श्री की दैवेकी राहवांधै अरु राज्यकी सजल वैढै तौ हम हमेस आपुके ऊकमी है. अरु पंश्री पंडित वालजी यहां है सो ऐ हमारी वात नाहीं चितमें घरत आइ. आपुकौ वडौ दुवारौ है जिहमै राज्य कौ सुधार होई सो कीवी. अरु जिहमै हमारे भैयाको ऊवेल होइ अरु हमारी बात रहै सो आपु कीवी. या हकीकति श्री नानासाहिब कौ जाहिरकर जिहमै राज्यकौ सुधार होइ तौन आपुकौ करनी है. और विदीवार हकीकति श्रटिकसारीभावानीसिंघकौ लिखी है सो ए जाहिर कर है. अरु इनऊके हाथ आगौ पाती लिखी है सोवचवाइ देखवी. हम सब वातनपै काइम है सिखापनु होई. सुफुरमाइ पठैवी मार्ग वदि ७ संवत १८४७ मुकामु
मडफा (?)