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स्मरणार्थ या सर्वनामांच्या मराठी अर्थाचा तक्ता करून ठेवू.

पूर्ववैदिक                             मराठी
अ                                 (अगदी जवळचा) हा
इ                                 (बराच जवळचा) हा
अम्                              (जवळचा) हा
उ                                 (किंचित् दूरचा ) तो
त्                                 (अगदीं परोक्ष) तो
लट्, लङ्, लोट्, लेट् यांच्या प्रथम पुरुषाच्या एकवचनांत वरील सर्वनामांचे खालील जोड येतात.

(तो) त् + ० =त् (अत्यंत परोक्ष परस्मै) भूत
( तो हा ) त् + अ = त (अत्यंत परोक्ष आत्मने ) भूत
(तो हा ) त् + इ = ति (प्रत्यक्ष परस्मै) वर्तमान
(तो हा स्वत: ) त् + अ + इ = ते (प्रत्यक्ष आत्मने ) वर्तमान
( तो हा स्वत:) त् + अ+ अ+ इ = तै (प्रत्यक्ष आत्मने ) वर्तमान
( तो तो) त् + उ = तु ( परोक्ष परस्मै) वर्तमान
( तो हा तो) त् + अ + अत् = तात् (परोक्ष परस्मै ) वर्तमान
( तो स्वत: हा ) त् + अ + अ + म् = ताम् (परोक्ष आत्मने) वर्तमान

वरील सर्व जोड प्रथमपुरुषाच्या एकवचनीं सामान्यत: येतात. या जोडांहून निराळे असे काही जोड प्रथमपुरुषाच्या एकवचनी संस्कृत व वेदभाषेत आढळतात. त्, त, ति, तै, तु, ताम् ही तकारी दर्शक सर्वनामे धातूंच्यापुढे जशी येतात, तशीच अ, इ, अम् ए, ही सर्वनामेही प्रथमपुरुषी एकवचनी धातूंच्या पुढे आलेली आढळतात. यात काही आश्चर्य नाही. कोणतेही दर्शक सर्वनाम धातूंच्या पुढे येईल. अर्थात, मात्र, फरक होतो. उदाहरणार्थ, प्रथमपुरुषी एकवचनाची ब्रूते व ब्रूवे ही रूपे घेऊ. ब्रूते म्हणजे तो (त्) स्वत: (अ) प्रत्यक्ष (इ) बोलतो आणि ब्रूवे म्हणजे हा स्वत: (अ) प्रत्यक्ष (इ) बोलतो.