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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड तिसरा ( १७०० -१७६०)

[५२७]                                                                     श्री.                                                                

वेदशास्त्रसंपन्न राजश्री वासुदेव दीक्षित स्वामीचे सेवेसी :-
विद्यार्थी बाळाजी बाजीराव प्रधान नमस्कार विनंति उपरि येथील क्षेम ता आषाढ शुध्द चतुर्थीपर्यंत यथास्थित असो. विशेष. आपण पत्र पाठविलें तें पावलें. लिहिलें वृत्त सविस्तर कळलें. दिल्लीकडील वर्तमान लिहिलें तें कळलें. पुढें आणखी वर्तमान आलें असेल अथवा येईल तें वरचेवर लेहून पाठवणें. वजीर धरला गेला; लूट कोण्याप्रकारें जाहाली ? पुढें बंदोबस्त कसा केला? हें वर्तमान जरूर लिहिलें पाहिजे. हे विनंति.



[५२८]                                                                     श्री.                                                                

वेदमूर्ति दीक्षित स्वामीचे सेवेसी :-
विनंति. येथील वर्तमान विशेष संतोषाचे होईल तेव्हा ल्याहावे हे इच्छा स्वामिचे आशिषप्रतापें आहे. नित्य युध्द थोडे कहिवर होतें. एकदा कांहीसें बरेंच जालें यवन शैन्यांत धान्य तीन सेर आहे. इकडे फौज चालिस हजार जाली. वरकडही जमा होत आहे. स्वामीनीं निरंतर पत्र पाठवावें. स्वामीचे कृपेनें उत्तमच होईल. राजाजीची व सना पुणियाची फार आहे. गेले तरी काय होणें. गनिमास घराचा काय मजकूर हे विनंति पौष शुध्द दशमि *