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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड तिसरा ( १७०० -१७६०)

 [८८]                                                                         श्री.                                                १९ डिसेंबर १७२०           

                                       
महाराजश्री तपोनिधी वास्तव्य श्रीपरशराम स्वामीचे सेवेशी
विनंति सेवेशी. माणकोजी चायशे व जगजीवन त्रिंबक स॥ नमस्कार. विनंति. उपरी स्वामी दहिवलीच्या तळावर आले. ते समयीं आपण कबूल रुपये ५०० पांचशे केले. त्यापैकीं तूर्त महाराजास रुपये १०० अंभर दिल्हे. बाकी रुपये ४०० चारशे राहिले ते आपण महाराजाचे पुढें देऊन. सु॥ इसन्ने अशरैन मबाव अलफ. छ २८ सफर यास मुदती वर्षें दोनीमध्यें झाडा करून. हे विनंति.



[८९]                                                                         श्री.                                                १७ दिसेंबर १७३६

श्रीमत् महाराजश्री परमहंस बावा स्वामीचे सेवेशी.

चरणरज बापूजी गणेश चरणावर मस्तक ठेऊन शिरसाष्टांग नमस्कार. विनंति. येथील वर्तमान त॥ छ १३ शाबान परियंत यथास्थित असे. विशेष. स्वामीचे रुपये दोन हजार कर्ज देणें आहेत. त्याचें व्याज देणें साल गुदस्ताचे कार्तिक शु॥ प्रतिपदेस शके १६५७ राक्षस नाम संवत्सरेस द्यावें. ते खंडोजी साळवी याजबराबर पाठविले असेत.

२०० खंडोजी साळवी याजबराबर.
  ५७ गोविंद केशव नेने याजबराबर.
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एकूण दोनशे सत्तावन रुपये दोन हजार रुपयांचें व्याज जाहलें. तें स्वामीचें पाठविलें असे. पावलियाचें उत्तर स्वामींनी पाठविलें पाहिजे. शके १६५७ राक्षस नाम संवत्सरे पोष शु॥ चतुर्दशी. सेवेशी श्रुत होणें. हे विज्ञापना.