Deprecated: Required parameter $article follows optional parameter $type in /home/samagrarajwade/public_html/libraries/regularlabs/src/Article.php on line 57

Deprecated: Required parameter $helper follows optional parameter $type in /home/samagrarajwade/public_html/libraries/regularlabs/src/Article.php on line 57

Deprecated: Required parameter $method follows optional parameter $type in /home/samagrarajwade/public_html/libraries/regularlabs/src/Article.php on line 57

मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड एकोणीसावा (१७७९-१७८४)

पै॥ छ १९ रबिलावल,                                                     लेखांक ८३.                                               १७०१ फाल्गुन शु ३.       
सन समानीन.                                                        श्रीशंकर.                                                    ९ मार्च १७८०.                                                                                  

चिरंजीव राजश्री तात्या यांसी प्रति आपाजी रघुनाथ आसीर्वाद उपरी.
येथील क्षेम ता। फाल्गुन शुद्ध ३ मुक्काम पुणें सुखरूप जाणोन स्वकीय कुशल लिहीत असलें पाहिजे. विशेषः–तुमचीं दोन पत्रें आलीं. सविस्तर वर्तमान कळों आलें. असेंच निरंतर पत्रद्वारें लेखन करावें. तेणेंकरून समाधान होईल. राजश्री आनंदराव यांचे पत्रांत पत्र, रा। गणेशपंत यांसी सातारां द्यावें ह्मणोन, पा।, तें पत्र त्यांणीं दिल्हें. तें सातारा घरीं प्रविष्ट केलें. तुह्मांकडील पत्रें सरकारांस येतात व आह्मांस येतात, तें वर्तमान सातारां घरीं लिहीत असतों. राजश्री आनंदराव ही सविस्तर सांगतात. त्यावरून चिंता वाटत नाहीं. सरकारांत पत्रें व तहनामे आले ते प्रविष्ट जाले. आमचें पत्र आह्मांस यजमानांनीं बलाऊन दिल्हें. वरचेवरी स्मरण देऊन करारनामे व पत्रें पा। आहेत. आठचौ रोजीं तुह्मांस प्रविष्ट होतील. त्यावरून सर्व धानास येईल. प्रसंगीं राजश्री गोविंदभट तात्याही साहित्य चांगलें करितात. त्यांचे कामाचें स्मरण असावें. राजश्री नरसिंगरावजींस ही सांगावें कीं, त्यांचे कार्याचें अगत्य असावें. येविसीं राजश्री आनंदरावही लिहितील. भटजीस पत्र आपण लि॥ होतें, तें प्रविष्ट करून उत्तर पाठविलें आहे. शिवरात्रीस घरास जावयाकरितां आपण लि॥. त्यास, जावयाचेंच होतेंच. परंतु, शरीरीं सावकास नवतें. केसतूड जालें, त्याणें उपद्रव बहुत जाला. घोडीवर बसतां न ये. यामुळें जाणें जालें नाहीं. परंतु, तेथें उस्छाह वर्शाप्रमाणें यथासांग केला. किमपि उणें कांहीं नसे. काल आपलें पत्र आह्मांस व राजश्री भटजींस आलें, तें पावलें. त्यांचे त्यांस प्रविष्ट केलें. वरकड वर्तमान यथास्थित असे. बहुत काय लिहिणें ? लोभ असों दीजे. हे आसीर्वाद.