७ ज्या वनस्पतिनामां वरून बरींच ग्रामनामें निघालीं त्यांतील मुख्यमुख्यांचें वर्णन एणें प्रमाणें:-
१ पिप्पल (पिंपळ) | ९० | २ वट (वड) | ७९ |
३ निंब (लिंब) | ४६ | ४ वरक (वरीं) | ४५ |
५ बदर (बोर) | ४३ | ६ चिंचा (चिंच) | ३७ |
७ नंदक (नांदुकीं) | ३४ | ८ उदुंबर (उंबर) | ३१ |
९ पलाश (पळस) | ३१ | १० हिंगु (हिंगणबेट) | ३० |
११ जंबु (जांभूळ) | २७ | १२ श्यामाक (सांवा) | २७ |
१३ मधु (मोहडा) | २४ | १४ करंज …. | २१ |
१५ कदंब (कळंब) | २० | १६ सारक (जैपाळ) | १८ |
१७ आम्र (अंबा) | १७ | १८ कटतृण | १७ |
१९ साक (साग) | १२ | २० अमला (आंवळी) | ११ |
२१ शिरीष (शिरस) | ११ | २२ पाटली (पाडळ) | ११ |
२३ शाल्मलि (सांवर) | ९ | २४ बर्बुर (बाभुळ) | ८ |
२५ कदली (केळ) | ७ | २६ खदिर (खैर) | ७ |
६७१ |
एकंदर १४२८ गांवें. त्यां पैकीं सुमारें निम्मी गांवें ह्या २६ वनस्पती खाली पडतात. ही च वर्गवारी कमजास्त फेरफारानें इतर हि विस्तीर्ण प्रांतांत पडावी, असं अदमास आहे.
८ वनस्पतींचीं सर्व नांवें व ग्रामवाचक सर्व प्रत्यय एथूनतेथून संस्कृत आहेत, निदान सध्यांच्या महत्तम संस्कृत कोशांत सांपडतात. एक हि वनस्पतिनाम असंस्कृत नाहीं. ऐन, उंडण, वगैरे दोन तीन नांवांचें मूळ संस्कृत मला देतां आलें नाही. तत्रापि तीं संस्कृतोत्पन्न आहेत यांत संशय नाही. ह्या सा-याचा अर्थ असा कीं वनस्पतिनामजन्य ग्रामनामें एकोनएक आर्य वसाहतवाल्यांनीं अरण्यांत वसाहत करतांना दिली. ह्या १४१८ ग्रामनामांत भिल्लादींचा बिलकुल पत्ता लागत नाहीं. नापत्याचें कारण आर्यप्रवेशाच्या आधीं दंडकारण्यांत भिल्लादींचा अभाव असो, किंवा आर्याची म्लेच्छभाषासहिष्णुता असो, किंवा भिल्लादींची अत्यन्त वन्यावस्था असो. तिन्हीं पक्षां पैकीं अमुक च पक्ष स्वीकार्य धरण्यास अद्याप पर्यंत ह्या वनस्पतिनामांत कांहीं च खूण सांपडलेली नाहीं.