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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड तिसरा ( १७०० -१७६०)

[३८८]                                                                    श्री.                                                              १५ आगस्ट १७५१.

पौ भाद्रपद शु॥ ८ शुक्रवार,
शके १६७३.

वेदशास्त्रसंपन्न राजमान्यराजश्री वासुदेव दीक्षित स्वामीचे सेवेसी :-
विद्यार्थी बाळाजीबाजीराव प्रधान कृतानेक नमस्कारविनंति उपरि येथील कुशल जाणून स्वकीय कुशल लेखन करीत जाणें. विशेष. रा० राघो गणेश वकीलीचे कामाबद्दल अवरंगाबादेस रवाना केले आहेत. त्यांस येथून कितेक सांगणें तें सांगितलें आहे. यांचे मुखवचनें श्रुत होईल. जाणिजे. रा छ ४ सौवाल. बहुत काय लिहिणें. हे विनंति.



[३८९]                                                                    श्री.                                                              १५ आगस्ट १७५१.

पौ भाद्रपद शु॥ ८ शुक्रवार
शके १६७३. बा जासूद जोडी.

वेदशास्त्रसंपन्न राजश्री वासुदेव दीक्षित स्वामीचे सेवेसी :-

विद्यार्थी बाळाजी बाजीराव प्रधान नमस्कार विनंति उपरि येथील कुशल जाणून स्वकीय लिहिणें. विशेष. आपण पत्रें पाठविलीं तीं पावलीं. ऐशियास, सर्व प्रकारें भरंवसा स्नेहाचा रामदासपंताचा आहे. त्यांचे स्नेहानें बहुत किफायती आहेत. जन नानाप्रकारें बोलतात. परंतु त्यांचा आमचे ठिकाणीं निष्ठापूर्वक स्नेह व आमची कृपा त्यांचे ठायीं असतां, वरकडांच्यानें काय होणें ? तिळमात्र संशय न मानितां त्यांनीं आपले दौलतेचा बंदोबस्त करावा. जें त्यांचे हित आमचे कर्तव्यायोग्य असले तें आह्मांस घरोबियाचे रीतीनें ल्याहावें. करावयास अंतर होणार आहीं. त्यांनीहीं आमचें हित तें करावें. गायकवाडाचे प्रसंगी त्यांनी कुमक पाठविली, येणेंकरून वचनप्रामाणिकतेचा पुढें फार भरंवसा धरिला आहे. बहुत काय लिहिणें. हे विनंति.