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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड तिसरा ( १७०० -१७६०)

 [२४३]                                                                      श्री.                                                                   १५ मे १७२८                                   

श्रीमत् सकल तीर्थस्वरूप श्रीपरमहंस बाबा स्वामीचे सेवेसी :-
अपत्यें सेखोजी आंग्रे सरखेल चरणावरी मस्तक ठेवून शिरसाष्टांग दंडवत प्रा। विनंति उपरि येथील कुशल वैशाख बहुल तृतीया सौम्यवासरपर्यंत स्वामीच्या कृपाकटाक्षवीक्षणें यथास्थित असे विशेष. पेषजी आशीर्वादपत्रीं आज्ञा केली होती कीं, एक दुलई करून पाठवणें. त्यावरून दुलई करून पाठविली असे. उत्तमशी नाहीं. असत्या संग्रहीं उंच थान होते त्याची केली असे अंगीकार करून पावलियाचें उत्तर पाठविले पाहिजे. बहुत काय लिहूं ? कृपा निरंतर वर्धमान केली पाहिजे. हे विनंति.