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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड दहावा (१७६१-१८१७)
पत्रांक ४३२
श्रीरामजी. १७१८ माघ शुद्ध ५
अपरंच. राजश्री पंडत बालुवा–तांत्याके नामका कागद पठायो सो पोंहोचा. समाचार मालुम हुवा. तीसपर दोनो दरबारका वेव्हार सुदामतसुं चलो आयो, तीणीमाफक चलो जायया, ई मुनासबहे. छडी फोजमा हे सीरदांरांसुं वाकर्नेल डीभाईकी मारफत करार ठेरनेमें आयो, सो उणाको लिषते सरिकारहें आयो, जींसिवाय दुसरी बात न्ही. राजदरबारसुं करार ठेहे-यां मुजब पुषताई रीयामें दो वुत्रफकी दुरुसताई जानोगा. हिंदुस्थानकी मुषत्यारी सीरकारसुं पंडत राजश्री जगुबाबापूकी त्रपू हे उणा हे पन सरकारसुं लीष रेहे. सारोज वाप उणासुं करोला. श्रीमंत राजश्री पेसवासाहिब की सिरकारको सारीत्रहे बंदोवस्त हुवो, अब हजुरसुं सीकहुयापर सवारी हिंदुस्थान-माहे जलदी हि आवेगी.