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मराठ्यांच्या इतिहासाची साधने खंड एकोणीसावा (१७७९-१७८४)

पौ। छ १३ मोहरम                                                     लेखांक २०४.                                                    १७०३ मार्गशीर्ष शु॥ १२.
इसन्ने समानीन मया व अलफ                                           श्री.                                                              डिसेंबर १७८१.                                                                         

राजश्रिया विराजित राजमान्य राजश्री बाळाजीपंत दाजी स्वामींचे सेवेसीं:-
पो। गणेश नारायण सां। नमस्कार विनंति. उपरि येथील कुशल ता। मार्गशीर्ष आपण मु॥ पुणें जाणोन स्वकीय कुशल लेखन करीत असावें. विशेष. आपण कृपा करून पत्र पो। तें पावलें. आसामीविसी लि॥ त्यास, जे वेळेस सनदा लावल्या ते वेळेस तो सुभेदारांनीं मान्य केलें कीं, उत्तम आहे. अलिकडे तिकडून खंडोजी चिकणे आलेच नाहीं. आलियावर सविस्तर समजेल. उपरांत आपणांस तपशीलवार लिहून पाठवूं. राजश्री गोपाळपंत यांची मातुश्री बहिणाबाई व चिरंजीव नाना माहुलीस सुखरूप आहेत. कळावें. बहुत काय लिहिणें लोभ कीजे हे विनंति. राजश्री विनायकपंत सहस्त्रबुद्धे यांचे घरचीं पत्रें आलीं आहेत. तीं मागाहून जोडीबरोबर पाठवून देऊं. वरकड सविस्तर यजमान स्वामींचे पत्रावरून कळेल. हे विनंति, राजश्री गोपाळपंत स्वामींस सां। नमस्कार विनंति लि।। लोभ करावा. आपले घरची सर्व मंडळी सुखरूप आहेत. कळावें हे विनंति.